नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-13

संध्या के समय कदंभ खेत में टहलते हुए किसी विशेष विषय पर चर्चा करने हेतु लक्षणा और उसकी नानी का इंतजार कर रहा था। और इसी की व्याकुलता में वह ना जाने कितनी बार खेत के चक्कर लगा चुका था। और जैसे-जैसे साँझ ढलती, वैसे- वैसे वह अति व्याकुल होते जाता।

वह कभी दूर खेत तक चले जाता तो कभी उस कुलदेवी के मन्दिर तक लौट आता। इन सबके बीच अचानक उनकी नजर खेत के कोने में लगे हुए एक पेड़ पर पड़ी। जिसे देख कदंभ अपनी समस्त व्याकुलता को भूल  एकाग्रचित्त होकर उस पेड़ की ओर देखने लगे।

कदंभ ने देखा कि वह पेड़ जैसे-जैसे सांझ होते जा रही थी और भी खिलने लगा था। अब तो जैसे कदंभ का पूरा ध्यान उस खेत में लगे सभी पेड़ों पर जाने लगा। वे सभी पेड़ ठीक उसी तरह साँझ होने के साथ और भी ज्यादा तरोताजा होते हुए जान पड़ते थे। जिसे देख कदंभ ने कुछ समय के लिए समय की गति और उन पेड़ों की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया। और फिर इस तरह अनजान बनते हुए निकल गए, जैसे उन्होंने कुछ देखा ही ना हो।

खेत के उस हिस्से से बाहर आकर उसने सबसे पहले मास्टरनी जी के  घर का पूरा जायजा लिया। उसने ध्यान से देखा की खेत की मेड़ पर लगी हुए पेड़ों की तरह घर के सामने लगे तुलसी भी जैसे जैसे सांझ होती वैसे वैसे और भी तरोताजा होते जा रही थी, और ठीक उसी के पास लगी हुई दूसरी तुलसी का व्यवहार सामान्य था। अब तो कदंभ से नहीं रहा गया और उसने , मास्टरनी जी के पास जाकर  पूछा कि यह दोनों तुलसियाँ और खेत की मेड़ पर लगाए गए वे पौधे कब और किसने लगाए??? तब कदंभ के ऐसे प्रश्नों को सुनकर मास्टरनी जी चौंक उठी। क्योंकि वह जानती थी कि कदंभ व्यर्थ ही इस प्रकार के कोई भी सवाल नहीं कर सकता। उनके चेहरे पर प्रश्नचिन्ह और भय मुद्रा देख कदंभ ने बात को सामान्य करते हुए पूछा, कुछ नही बस यूं ही पूछ रहा कि इतने सुन्दर पेड़ कहां से लाए??ये बहुत ही कम देखने में आते हैं। तब मास्टरनी जी भयमुक्त और अति उत्साहित होकर पेड़ों के बारे में बताने लगी कि, यह पेड़  खुद चंदा ही पता नही कहां से लाए। और चुंकि यह सभी पेड़ बहुत प्यारे थे, और सबसे अच्छी बात तो यह है कि इन पेड़ों के फूल कभी नहीं मुरझाते और नष्ट होने वाली पत्तियां  भी नजर नहीं आती थीं। और चंदा ही इनकी साफ-सफाई का ध्यान पहले रखती थीं।

मास्टरनी जी हर बात को अति उत्साहित होकर सामान्य स्वभाव में बता रही थी। लेकिन वही कदंभ उसके द्वारा कहे एक-एक शब्द को ध्यान पूर्वक सुन रहा था। उसने मास्टरनी जी से तुलसी का व्यवहार, पेड़ों की संख्या इत्यादि सभी की जानकारी लेकर पुनः खेत की ओर लौट आया। जिस विषय में मास्टरनी जी विस्तार पूर्वक बताकर अपने काम में लग गई।

कदंभ विचार करने लगा कि ये सभी पेड़ परिजात परिवार से संबंधित है। जो गंधर्व राज के बगीचे की शोभा बढ़ाते हैं, और गर्म होने के कारण जैसे-जैसे शाम ढलती है, उनका प्रभाव भी बढ़ जाता है। इसी कारण उन्हें खेत और घर की सुरक्षा हेतु उनके आस-पास लगवाया गया है। लेकिन किसने?? और क्यों?? यह जानने का विषय है, क्योंकि यह पेड़ स्वयं में कोई कम शक्तिशाली नहीं थे, इनका व्यवहार किसी गंधर्व शक्ति से कम नहीं, इसलिए घर और खेत पूर्ण रूप से संरक्षित थे।और यह तुलसी भी गंधर्व लोक से लाई गई थी जो कभी  मुरझाती नहीं और समीप आने पर अत्यंत ऊर्जा का प्रभाव भी करती है। तब तो इसके पूजन का फल ही अलग होगा, यदि  विधिवत इसका पूजन किया जाए तो प्राप्त होने वाली शक्ति अत्यंत प्रभावशाली होती है।

कदंभ का खेत और घर के हर कोने कोने देखना और हर वस्तु पर चर्चा करना स्पष्ट रूप से बता रहा था, कि उसे कुछ ना कुछ तो आशंका जरूर महसूस हुई, क्योंकि कदंभ जानता था, यह वृक्ष जैसे आम तुलसी, किसी व्यक्ति को पाचन क्षमता और शरीर शुद्धि में मदद करता है।  ठीक उसी प्रकार यह गंधर्व तुलसी है जिसे, गृहण  करने वाले को अत्यंत शक्ति (ऊर्जा), निरोगी काया, आत्म बलसाली और शक्तियों का संरक्षण करने के साथ ही उन्हें सहन कर पाने की शक्ति प्राप्त होती है। शायद इसलिए मास्टरनी जी का  स्वभाव इतना गंभीर, भक्तिमय हो चला था, और उनकी शक्तियों के पीछे छिपे हुए राज कहीं ना कहीं उनके खेत की मेड़ और घर में लगे इस तुलसी और उन पेड़ों के पीछे ही छिपे हैं। लेकिन यह पेड़ कब कैसे क्यों धरती लोग तक पहुंचे यह सोचते हुए कदंभ टहलते हुए बहुत ज्यादा विचार न कर सीधे जा पहुंचा, खेत के अंत में बने कुल देवी के मंदिर के पास.....

वहां वृद्ध रूप में बैठी महिला जिसके चेहरे पर एक विषेश ओज झलकता था। कदंभ को देख वृद्ध महिला मुस्कुराते हुए कहने लगी....आओ कदंभ जिस जिस के पास नागशक्तियों का अंश निहित है या जिन पर उनकी विशेष कृपा है, वे ही तुम्हें देख और सुन पाते हैं।

हैं....ना....कदंभ! मैं जानती थी कि जब तुम इस ग्राम की सीमा में प्रवेश कर रहे थे, तभी तुम्हें इन पेड़ों का भान हो जाना चाहिए था। लेकिन अब तक तुम्हारा ध्यान नहीं गया। यह आश्चर्य का विषय है। खैर देर से ही सही, लेकिन तुमने जान तो लिया।

कदंभ इन पेड़ों को मैंने ही स्थापित करवाया है। मैं ही चंदा की सखी बनकर बचपन में उसके साथ खेलती थी। जिससे चंदा आज तक अनजान है। मैंने उसे एक बार पहाड़ी की तलहटी पर ले जाकर इन वृक्षों को सौंपा था, और अपने खेत में लगाने को कहा। इस ग्राम की सुरक्षा और चंदा को किसी भी प्रकार की कोई बाधा ना हो। इस को ध्यान में रखकर मैंने ही उसे इस गंधर्व तुलसी का पूजन करने की सलाह दी थी।

कदंभ अब चिंता ना करो। लक्षणा से कहो वह गंधर्व तुलसी का पूर्ण मन से पूजन करें। जिससे जब उसे नागपत्री तक पहुंचने के लिए गंधर्व द्वार से गुजरना होगा। उस समय इस तुलसी का आशीर्वाद और शक्ति उसकी मदद करेगी।

क्रमशः...

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2 Comments

Mohammed urooj khan

31-Oct-2023 05:03 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

25-Oct-2023 05:38 PM

बेहतरीन भाग

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